अभी तो चलना ही सीखा था। 



अभी तो खेलने कूदने की उम्र थी मेरी ,
अभी तो चलना ही सीखा था  -2
मासूम थी ,नादान थी ,मै एक बच्ची थी,
हां में अपने मम्मी पापा की बहुत लाडली  थी ,
तीन साल की उम्र थी मेरी  ,
जब वो दरिंदे अपनी हवस के कारण,
मुझे पकड़कर गुफ्त अंधेरे
कमरे में  ले गए थे,
मेरी जांघो पर हाथ फेरते हुऐ,
मुझे अपनी गोद में बैठा लिया था ,
काप गई थी  मेरी  रूहु भी ,
तभ  में पसीना -2 हो गयी थी। -2
अभी तो खेलने कूदने की उम्र थी मेरी ,
अभी तो चलना ही सीखा था  -2 
मानो उस समय मेरे पैरो तले जमीन खिशक गई थी-2
हद तो तभ हुई जब एक -2  ने मेरे शरीर को नोचना शुरू किया था।
में बहुत रो रही थी और चिल्ला रही थी -2
पर मेरी कोई वहाँ चीख पुकार सुनने वाला भी नहीं था,
फिर उन हवस के  दरिंदो  ने मेरा मुँह भी बंद कर दिया था
फिर में अपने दर्द को बयां भी नहीं कर सकती थी
मुझे बहुत दर्द हो रहा था ,और में उस दर्द को
 अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रही थी,
मुझे ऐसा लग रहा था की अब तो मेरा खुदा भी मुझसे रूठ गया है।
अभी तो खेलने कूदने की उम्र थी मेरी ,
अभी तो चलना ही सीखा था  -2
सच कहती हूँ  में, तुमने उस दिन मेरा बलत्कार नहीं,
उस इंसानीयत का बलत्कार किया था।
मुझ मासूम में क्या दिखा था,
जो तुमने मुझे इतना सताया था।
या खुदा तुम एसे बंदे को अपना नेक बंदा बताते हो।
जिसको फर्क नहीं पड़ता उम्र और सोच के बंधन में ,
जिस बंदे की सोच इतनी नीच प्रवर्ति की हो सकती है ।
 लानत हे, धिक्कार हे,
तुम्हारे एसे वजूद का जिसको तुम मर्दानगी बताते हो
अभी तो खेलने कूदने की उम्र थी मेरी ,
अभी तो चलना ही सीखा था  -2


____ अनुज सम्राट जी